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लेखनी कहानी -22-Jun-2022 रात्रि चौपाल

भाग 4 : शाही लोग शाही शौक 


कलेक्टर अविनाश  की एक विशेषता थी । चाहे काम कितना ही हो , आज का काम आज और अभी ही होगा । इसके बावजूद शाम को 6 बजे तक ही ऑफिस में बैठना है , इसके बाद नहीं,  यही उसूल था उसका । सामान्यत: कलेक्टर देर रात तक ऑफिस में बैठते हैं लेकिन अविनाश के उसूल ऐसे ही थे "सरकारी समय पर काम , बाकी समय पर आराम" । 6 बजे बाद उसे बिलियर्ड्स खेलने जाना होता है । कलेक्टर बनने के बाद बिलियर्ड्स जैसे "शाही" खेल खेलने से एक अलग ही "फीलिंग्स" आती है । यह फीलिंग्स एकदम अंग्रेजों वाली ही है । खुद को शासक समझने की फीलिंग्स।  जनता को शासित समझने की फीलिंग्स । इस फीलिंग्स का मजा ही कुछ और है । 
ठीक 6 बजे अविनाश उठ खड़ा हुआ । ड्राइवर को पता है कि साहब ठीक 6 बजे ऑफिस छोड़ देते हैं इसलिए वह साढे 5 बजे ही गाड़ी लगा देता है । पुलिस का जवान जो सुरक्षा में लगा रहता है , वह भी पोने छ : बजे तनकर गेट पर,खड़ा हो जाता है । पी ए भी साढे 5 बजे से ड्राइवर के पीछे लग जाता है गाड़ी लगवाने के लिए । कहीं ऐसा ना हो कि साहब अपने चैम्बर से निकल पडें और गाड़ी लगी हुई नहीं हो । दुनिया इंतजार कर सकती है साहब का मगर साहब किसी का इंतज़ार नहीं कर सकते हैं । क्या कभी "राजा" इंतजार करता है ? उसे जब जो चीज चाहिए,  दरबारियों की जिम्मेदारी है कि उसे वह चीज उसी समय उपलब्ध करवा दी जाये । अगर ऐसा नहीं हो सके तो दरबारियों की खाल उधेड़ ली जाती है । 

अब जमाना बदल गया है । कहने को तो देश में लोकतंत्र है, देश आजाद है मगर ये सब केवल किताबी बातें हैं । गोरे अंग्रेज तो चले गये मगर काले अंग्रेज छोड़ गये । IAS और IPS काले अंग्रेज बनकर अभी भी "राज" कर रहे हैं । हां , इतना अवश्य बदला है कि अब "खाल खिंचवाना" उनके क्षेत्राधिकार में नहीं है । कभी कभी मन बहलाने के लिए किसी को "मुर्गा" बनाकर "खाल खींचने" जैसी फीलिंग्स ले लेते हैं ये लोग । कभी कभी किसी को दो चार थप्पड़ मारकर अपनी "बादशाहत" का सबूत भी दे देते हैं । हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं में तेजी से गिरावट आई है जो बहुत ही चिंतनीय है । 

कारण वो नहीं है जो आप सोच रहे हैं । इनका कोई हृदय परिवर्तन थोड़ी हो गया है और न ही इन्होंने अपने आपको "राजा" समझना बंद किया है । ये तो मोबाइल का जमाना आ गया और अब हर हाथ को कोई काम हो या ना हो मगर हर हाथ में कम से कम एक मोबाइल तो अवश्य होता है । अब तो भिखारी भी भीख में पुराना मोबाइल नहीं लेता है   कहता है "देना है तो नया मोबाइल इतनी जीबी वाला दो वर्ना इस 'कबाड़' को अपने अंग्रेज विशेष में रख लो" । बेचारा देने वाला भिखारी का मुंह देखता ही रह जाता है । 

जब हर हाथ में मोबाइल होता है तो उस मोबाइल से हजारों फोटो खींचे जा सकते हैं , वीडियो बनाए जा सकते हैं । बस, यही एक कारण है जिसने कलेक्टरों को मुर्गा बनाने से रोक दिया है और दो चार लात घूंसे बरसाने पर प्रतिबंध लगा दिया है । कुछ ऐसे वीडियो वायरल हो गये और कुछ कलेक्टरों की करतूत जग जाहिर हो गई  । अगर "राजा" लोगों की ऐसी घटिया करतूतें आम आदमी तक जायेंगी तो आम आदमी में उनकी क्या इज्जत रह जाएगी ? बस, इस एक अज्ञात भय ने उनसे वह सारा सुख चैन छीन लिया है जिसके वे नैसर्गिक अधिकारी हैं । 

"रॉयल क्लब" में केवल "रॉयल" लोग ही आ सकते हैं । ऐरा गैरा नत्थूखैरा वहां पर पैर भी नहीं मार सकता है । ऐसी व्यवस्था कर दी थी व्यवस्थापकों ने । कलेक्टर साहब का टाइम उनकी मर्जी के अनुसार रखा गया था । इस समय पर बस सात आठ "खानदानी रईस और जमींदार" जैसे लोगों को रखा गया था जिसकी फीस बीस हजार रुपए महीना थी । मगर कलेक्टर साहब और एस पी साहब तो उस क्लब में पधार कर उसे उपकृत ही कर रहे हैं । इतना ही बहुत है उनके लिए । क्लब के मालिक इसी में अपनी शान समझ लेते हैं कि कलेक्टर और एस पी साहब उनके क्लब में आते जाते हैं । 

कलेक्टर साहब ने यहीं पर ही बिलियर्ड्स सीखा था । पर थोड़े से समय में ही वे एक अच्छे खिलाड़ी बन गये । इस दौरान उनका फोन बजता ही रहता था मगर वे उसकी परवाह नहीं करते थे । कलेक्टर से बात करना इतना आसान काम थोड़ी ना है , बहुत तपस्या करनी पड़ती है बात करने के लिए, मुलाकात करने के लिए  । कलेक्टर साहब दो ही फोन तुरंत अटेंड करते थे   एक तो बॉस का और दूसरा गर्लफ्रेंड का । गर्लफ्रेंड भी कोई ऐसी वैसी नहीं थी वह भी एक IAS ही है । साहब की बैचमेट है । मसूरी में मुलाकात हुई और मुलाकात प्यार में बदल गई । कलेक्टर साहब का वह पहला प्यार हों, यह आवश्यक नहीं है । कलेक्टर साहब तो "प्यार के पुजारी" हैं । इश्क उनकी रग रग में बसा है । स्कूल लेवल से ही वे इश्क के बंधन में बंध रहे हैं । 

स्कूल बदला तो प्यार भी बदल गया । नया स्कूल,  नया प्यार । यह जीवन मंत्र बन गया उनका । कॉलेज में तो इतना लंबा प्यार खींचने का कोई औचित्य भी नहीं था , इसलिए पॉलिसी बदलनी पड़ी । अब "क्लास" बदलो, प्यार बदलो" का नया सिद्धांत प्रतिपादित किया गया । फिर तो प्यार किसी ठेले के आइटम जैसा हो गया । जब जी चाहो , कर लो । मसूरी में भी कई लड़कियों से चक्कर चला था और अंत में श्रेया से टांका भिड़ा । उसके बाद ट्रेनिंग खत्म हो गई । यदि ट्रेनिंग और चलती तो हो सकता है कि एक दो प्रेमिकाओं के नाम उस सूची में और जुड़ जाते । हां , अभी तक श्रेया गर्लफ्रेंड बनी हुई है, यह आश्चर्यजनक बात है । 

दूसरा आदमी है "बॉस" जिसका फोन उठाना बेहद जरूरी है   एकबारगी गर्लफ्रेंड का फोन अटेंड करने में देर हो सकती है मगर बॉस के फोन में नहीं । बॉस आखिर बॉस हैं । मुख्यमंत्री जी के "प्रधान सचिव" हैं । सरकार वही चला रहे हैं , इसलिए उनका एक एक मिनट बहुत कीमती होता है । इसलिए उनको इंतजार नहीं करवाया जा सकता है । ट्रांसफर,  पोस्टिंग सब उनके ही हाथ में है । उनकी नजर टेढी हो जाये तो ब्रहांड हिल जाये । हर कलेक्टर और एस पी की जान उनके ही हाथों में होती है । बॉस ही मुख्यमंत्री जी को ब्रीफ करते हैं इसलिए किसी कलेक्टर,  एस पी की रिपोर्ट मुख्यमंत्री जी को बॉस ही करते हैं । उनके हाथ में सारे कलेक्टर और एस पी की डोर रहती है जिन्हें कठपुतली की तरह नचाया जा सकता है । कलेक्टर नाचता भी दो ही लोगों से है , बीवी और बॉस से । बाकी सबको वह विभिन्न प्रकार का नाच नचाता रहता है । 

बॉस के फोन की रिंगटोन अलग थी । गर्लफ्रेंड के फोन की अलग और बाकी सबकी एक जैसी रिंगटोन थी । जैसे ही रिंगटोन बजती, अविनाश को समझ में आ जाता कि किसका फोन है ? फिर उसी के अनुरूप बात करता था वह । 

बिलियर्ड्स खेलते खेलते बॉस का फोन आ गया । अविनाश भागकर मोबाइल के पास गया और फोन अटेंड किया । अभिवादन करने के बाद बोला "क्या आदेश हैं सर" ? 
"ऐसा करो , एक रिसॉर्ट की व्यवस्था करो तुरंत । सभी माननीय विधायकों को उसमें बाड़ाबंदी करके रखना है । उसमें कम से कम डेढ सौ कमरे तो होने ही चाहिए । अभी आधे घंटे में देखकर बताना मुझे" और बिना अविनाश की बात सुने बॉस ने फोन काट दिया । 

क्रमश : 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
2.7.22 

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7 Comments

Rahman

17-Jul-2022 10:00 PM

Nyc👍👍

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Saba Rahman

17-Jul-2022 08:37 PM

Osm

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Shnaya

17-Jul-2022 03:40 PM

बहुत खूब

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